एक समय की बात है, हिमालय की तराई में स्थित एक छोटा-सा गाँव था—“आनंदपुर”। यह गाँव भले ही छोटा था, पर यहाँ रहने वाले लोगों के दिल बेहद बड़े थे। गाँव के बीचों-बीच एक प्राचीन मंदिर था। मंदिर में दो दीपक जलते थे—एक बड़ा और एक छोटा।
बड़ा दीपक पीतल का बना था और हर शाम उसे ताज़ा घी, नया कपास और चमकदार सजावट से सजाया जाता था। छोटे दीपक का आधार मिट्टी का था, उसमें अक्सर तेल कम पड़ जाता, और कभी-कभी बाती भी आधी जली रहती।
समय बीतता गया और बड़ा दीपक घमंडी हो गया। वह अक्सर छोटे दीपक से कहता—
“तुम मुझसे क्या तुलना करोगे? देखो, सब लोग मेरी पूजा करते हैं, मुझे चमकाते हैं, और तुम्हें तो कोई पूछता भी नहीं!”
छोटा दीपक हमेशा मुस्कुरा देता और शांत स्वर में कहता—
“दीपक चाहे बड़ा हो या छोटा… प्रकाश सबका एक-सा ही होता है।”
लेकिन बड़ा दीपक अपनी शान-शौकत पर फूलकर कुप्पा रहता।
🌧️ एक रात कुछ ऐसा हुआ जिसने सब बदल दिया…
उस दिन मंदिर में बहुत तेज़ आँधी-तूफान आया। हवा इतनी तेज़ थी कि मंदिर के सभी दरवाज़े जोर-जोर से हिलने लगे। पुजारी ने जल्दबाज़ी में दरवाज़े बंद किए और घर चला गया।
अंधेरी रात में हवा का एक ज़ोरदार झोंका आया और बड़े दीपक की लौ बुझ गई!
पीतल का शरीर भारी था, लेकिन घमंड ने उसकी सावधानी छीन ली थी—वह तूफ़ान के लिए तैयार न था।
धीरे-धीरे पूरा मंदिर अँधेरे में डूब गया।
अब सिर्फ़ एक जगह हल्की-सी टिमटिमाती रोशनी दिखाई दे रही थी—छोटे दीपक की।
मिट्टी का होने के बावजूद, उसका आधार हवा की दिशा में ढका हुआ था।
उसने अपने छोटे-से प्रकाश से पूरे मंदिर को रोशन कर दिया।
सुबह जब पुजारी आया, उसने देखा कि मंदिर की एकमात्र रौशनी छोटे दीपक से आ रही थी।
वह बोला—
“सच्ची सेवा और विनम्रता ही सबसे बड़ी शक्ति है।”
बड़ा दीपक शर्म से झुक गया।
उसे समझ में आ गया कि प्रतिष्ठा, दिखावा और रूप मायने नहीं रखते—बल्कि सतत प्रयास, नम्रता और धैर्य ही किसी को महान बनाते हैं।
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