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अंधकार के बाद उजाला

सिया एक छोटे शहर में जन्मी थी , जहाँ हर घर में सीमित संसाधन और छोटे सपने ही रहते थे। उसके पिता एक सरकारी कर्मचारी थे , जो अपनी जिम्मेदारियों में व्यस्त रहते और अक्सर थके हुए घर लौटते , जबकि माँ घर संभालती और छोटी-छोटी खुशियों को जुटाने की कोशिश करतीं। बचपन से ही सिया ने गरीबी और संघर्ष को बहुत करीब से महसूस किया था। स्कूल में उसके पास सही किताबें या नए कपड़े नहीं होते थे , और अक्सर बच्चे उसका मजाक उड़ाते थे , लेकिन सिया हमेशा चुप रहती , अपने दिल में छोटे-छोटे सपनों को पनपाती। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी , जो उसके भीतर छुपी उम्मीद और आत्मविश्वास को दर्शाती थी। समय बीतता गया और सिया के पिता की तबीयत अचानक बिगड़ गई। परिवार पर आर्थिक दबाव बढ़ गया , और सिया को समझना पड़ा कि अब वह केवल अपनी पढ़ाई तक ही सीमित नहीं रह सकती , बल्कि घर के लिए भी जिम्मेदारियों को उठाना होगा। कई बार उसने स्कूल छोड़कर काम करने का सोचा , लेकिन माँ ने उसकी किताबों को गले लगाकर कहा , “ सिया , अगर तुम पढ़ाई छोड़ दोगी तो हमारे सपने भी अधूरे रह जाएंगे।” उस दिन सिया ने पहली बार अपने भीतर एक अडिग संकल्प महसूस किया। ...

तेनाली राम और रहस्यमयी कर वसूली

 विजयनगर साम्राज्य में राजा कृष्णदेव राय का शासन था। उनका राज्य सुख-समृद्धि से भरा हुआ था, लेकिन एक समस्या उन्हें लगातार परेशान कर रही थी। राज्य के कुछ दूरदराज़ इलाकों से कर सही समय पर नहीं पहुँच रहा था। वहाँ के अधिकारी हर बार कोई न कोई बहाना बना देते थे।

राजा ने दरबार में यह समस्या रखी। कई मंत्री बोले कि वहाँ सैनिक भेजे जाएँ, कुछ ने कहा कि कर बढ़ा दिया जाए। राजा उलझन में थे। तभी तेनाली राम आगे आए।

तेनाली राम ने कहा,
“महाराज, अगर आज्ञा हो तो मैं इस समस्या को बुद्धि से सुलझाना चाहता हूँ, न कि तलवार से।”

राजा मुस्कराए और उन्हें अनुमति दे दी।

तेनाली राम साधारण वेश में उन गाँवों की ओर चल पड़े जहाँ से कर नहीं आ रहा था। उन्होंने वहाँ पहुँचकर खुद को एक व्यापारी बताया। उन्होंने देखा कि लोग गरीब नहीं थे, बल्कि अधिकारी किसानों से ज़्यादा कर वसूलते थे और उसका बड़ा हिस्सा खुद रख लेते थे।

तेनाली राम को सच्चाई समझ में आ गई, लेकिन सीधे आरोप लगाने से कुछ हासिल नहीं होने वाला था। उन्होंने एक चाल चली।

अगले दिन तेनाली राम ने पूरे इलाके में ढोल पिटवा दिया कि
“राजा कृष्णदेव राय स्वयं आने वाले हैं और वे उन लोगों को इनाम देंगे जो सबसे ईमानदार कर जमा करेंगे।”

यह सुनकर अधिकारी घबरा गए। उन्हें डर लगने लगा कि अगर राजा आ गए तो उनका भेद खुल जाएगा।

तेनाली राम ने अधिकारियों से कहा कि वे पहले ही सारा कर इकट्ठा करके एक जगह जमा कर दें। लालच में आकर अधिकारियों ने चोरी का सारा धन भी उसमें मिला दिया, ताकि राजा प्रसन्न हों।

तभी तेनाली राम ने अपना असली रूप प्रकट किया और सैनिकों को बुला लिया। सभी अधिकारी पकड़े गए। किसानों ने भी सच्चाई बता दी।

अधिकारियों को कड़ी सज़ा दी गई और किसानों से माफ़ी माँगी गई। राजा ने घोषणा की कि आगे से कर सीधे राजकोष में जाएगा।

राजा कृष्णदेव राय ने तेनाली राम की प्रशंसा करते हुए कहा,
“तुमने एक बार फिर साबित कर दिया कि बुद्धि सबसे बड़ा हथियार है।”

तेनाली राम ने मुस्कराकर कहा,
“महाराज, न्याय और समझदारी साथ हों तो राज्य हमेशा फलता-फूलता है।”


सीख

👉 बुद्धिमत्ता, धैर्य और सही योजना से बड़ी से बड़ी समस्या हल की जा सकती है।

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