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अंधकार के बाद उजाला

सिया एक छोटे शहर में जन्मी थी , जहाँ हर घर में सीमित संसाधन और छोटे सपने ही रहते थे। उसके पिता एक सरकारी कर्मचारी थे , जो अपनी जिम्मेदारियों में व्यस्त रहते और अक्सर थके हुए घर लौटते , जबकि माँ घर संभालती और छोटी-छोटी खुशियों को जुटाने की कोशिश करतीं। बचपन से ही सिया ने गरीबी और संघर्ष को बहुत करीब से महसूस किया था। स्कूल में उसके पास सही किताबें या नए कपड़े नहीं होते थे , और अक्सर बच्चे उसका मजाक उड़ाते थे , लेकिन सिया हमेशा चुप रहती , अपने दिल में छोटे-छोटे सपनों को पनपाती। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी , जो उसके भीतर छुपी उम्मीद और आत्मविश्वास को दर्शाती थी। समय बीतता गया और सिया के पिता की तबीयत अचानक बिगड़ गई। परिवार पर आर्थिक दबाव बढ़ गया , और सिया को समझना पड़ा कि अब वह केवल अपनी पढ़ाई तक ही सीमित नहीं रह सकती , बल्कि घर के लिए भी जिम्मेदारियों को उठाना होगा। कई बार उसने स्कूल छोड़कर काम करने का सोचा , लेकिन माँ ने उसकी किताबों को गले लगाकर कहा , “ सिया , अगर तुम पढ़ाई छोड़ दोगी तो हमारे सपने भी अधूरे रह जाएंगे।” उस दिन सिया ने पहली बार अपने भीतर एक अडिग संकल्प महसूस किया। ...

गरीब किसान की कहानी

 

एक छोटे से गाँव में रामू नाम का किसान रहता था। उसका परिवार बहुत ही गरीब था। उसके पास कुछ बिंदु जमीन थी और एक पुराना हल। रामू का जीवन सादा था, लेकिन वह हमेशा ईमानदार और मेहनती था।

रामू की दिनचर्या बहुत ही कठिन थी। सुबह सूरज निकलते ही वह खेत में काम करने निकल जाता। उसकी पत्नी सीता और बच्चे भी खेत में उसकी मदद करते। बच्चों की उम्र छोटी थी, फिर भी वह मिट्टी में हाथ डालकर सीखते।

रामू की सबसे बड़ी चिंता थी कि सालभर की मेहनत के बाद भी फसल कम आती और उसका परिवार मुश्किलों में रह जाता। लेकिन रामू कभी हार नहीं मानता। वह हमेशा सोचता, “अगर मेहनत करूँगा, तो एक दिन ज़रूर सफलता मिलेगी।”

रामू के गाँव में बारिश कम हो रही थी। खेतों में पानी की कमी थी और मिट्टी सूखी पड़ गई थी। उसने मेहनत से बीज बोए, लेकिन आधे खेतों में फसल सूखने लगी।

रामू बहुत परेशान हुआ। वह सोचता रहा कि अगर फसल न हुई, तो बच्चों का खाना कैसे चलेगा। उसकी पत्नी सीता भी चिंतित थी।
“रामू, अब क्या करेंगे?”
रामू ने गहरी साँस ली और कहा,
“सीता, हम हार नहीं मानेंगे। कोई रास्ता निकल ही आएगा। हमें धैर्य रखना होगा।”

रामू ने गाँव के बुजुर्गों से मदद ली। उन्होंने बताया कि पानी बचाने के लिए खड्डियाँ बनानी होंगी और फसल को समय-समय पर पानी देना होगा। रामू ने पूरे खेत में मेहनत शुरू कर दी।

कुछ महीनों की मेहनत के बाद, फसल ने जीवन लिया। खेत हरे-भरे दिखाई देने लगे। रामू और उसका परिवार खुश हुआ। उसने सोचा कि अब कठिनाइयाँ खत्म हो गईं।

लेकिन दुर्भाग्य ने फिर दस्तक दी। गाँव में अचानक अकाल पड़ गया। किसान परेशान हो गए। रामू ने देखा कि बाकी किसान दुखी हैं। उसने अपने गाँव वालों के लिए योजना बनाई।
“हम सभी मिलकर पानी बचाएँगे और फसल को सुरक्षित करेंगे,” रामू ने कहा।

रामू ने अपने छोटे-छोटे तालाबों से पानी बचाना शुरू किया। उसने बांस और मिट्टी से नई सिंचाई की व्यवस्था की। धीरे-धीरे फसल फिर से बढ़ने लगी।

रामू ने देखा कि अकेले मेहनत करने से सब कुछ नहीं होगा। उसने गाँव के लोगों को इकट्ठा किया और कहा,
“हम सब मिलकर काम करेंगे। एक-दूसरे की मदद करेंगे। तभी हमारी फसल बच पाएगी।”

गाँव वाले रामू की बातों से प्रेरित हुए। उन्होंने सभी खेतों में पानी बाँटना शुरू किया। महिलाओं ने बीज बोने और खेत की सफाई में मदद की। बच्चों ने हल चलाने में हाथ बँटाया।

रामू ने महसूस किया कि जब लोग एकजुट होकर मेहनत करते हैं, तो कठिनाइयाँ भी आसान लगने लगती हैं।

साल की मेहनत के बाद, रामू की फसल अच्छी हुई। उसने अपनी मेहनत और गाँव वालों की मदद से मुश्किल समय को पार किया। उसने सोचा,
“सच्ची मेहनत कभी बेकार नहीं जाती।”

रामू ने फसल का कुछ हिस्सा अपने परिवार के लिए रखा और बाकी गाँव वालों में बाँट दिया। सभी ने मिलकर खुशियाँ मनाई।

गाँव के लोग रामू की तारीफ़ करने लगे। उन्होंने कहा,
“रामू, तुम्हारी मेहनत और ईमानदारी ने हमें बचाया। तुम्हारा धैर्य और लगन हम सबको प्रेरणा देता है।”

रामू ने अपने जीवन से यह सीख लिया कि सिर्फ मेहनत से नहीं, बल्कि धैर्य, एकजुटता और ईमानदारी से जीवन की कठिनाइयाँ पार की जा सकती हैं। उसने अपने बच्चों को भी यही सिखाया।
“बच्चों, मेहनत करो, लेकिन धैर्य और सहयोग को कभी मत भूलो। यही जीवन की सबसे बड़ी ताकत है।”

रामू ने अब नए सपने देखने शुरू कर दिए। उसने सोचा कि वह अपने गाँव में एक छोटा-सा तालाब और नई सिंचाई की व्यवस्था बनाएगा। इससे गाँव के किसान हर साल अच्छी फसल उगा सकेंगे।

रामू की मेहनत और लगन से गाँव बदलने लगा। किसान अब अपने खेतों में अच्छे से पानी का प्रबंध करने लगे। बच्चे स्कूल जाने लगे और महिलाएँ भी खेती में नई तकनीक सीखने लगीं।

रामू ने गाँव के लिए कई योजनाएँ बनाई। उसने देखा कि अगर मेहनत और ज्ञान का मेल हो, तो गरीब किसान भी अपनी जिंदगी बदल सकता है।

रामू ने महसूस किया कि गरीब होना कोई कमजोरी नहीं, बल्कि मेहनत और धैर्य की परीक्षा है। उसने अपनी जिंदगी से साबित कर दिया कि अगर ईमानदारी और मेहनत हो, तो कोई भी मुश्किल बड़ी नहीं होती।

रामू की कहानी गाँव में एक प्रेरणा बन गई। बच्चे उसकी मेहनत की मिसाल देते और गाँव के लोग उसे सम्मान से देखते।

रामू अब केवल एक किसान नहीं, बल्कि गाँव का प्रतीक बन गया—मेहनत, धैर्य और उम्मीद का प्रतीक।

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