दिल्ली की ठंडी सुबह थी, लेकिन रॉ (RAW) मुख्यालय की तीसरी मंज़िल पर माहौल असामान्य रूप से गर्म था। बड़े से कॉन्फ्रेंस रूम में बैठे अफसरों के चेहरों पर चिंता साफ झलक रही थी। दीवार पर लगी विशाल स्क्रीन पर भारत का नक्शा चमक रहा था, और उसके कुछ हिस्से लाल रंग से चिह्नित थे। यही वे स्थान थे जहाँ पिछले तीन महीनों में देश की सुरक्षा से जुड़ी संवेदनशील जानकारियाँ लीक हुई थीं। यह कोई साधारण जासूसी नहीं थी, बल्कि अंदर से हो रहा एक सुनियोजित हमला था।
इसी कमरे में मेज के सिरे
पर बैठा था अर्जुन राठौड़—RAW का सबसे भरोसेमंद फील्ड
एजेंट। लंबा कद, गंभीर आँखें और चेहरे पर स्थायी सख्ती। अर्जुन ने
युद्धक्षेत्र में अपने देश के लिए कई मिशन पूरे किए थे, लेकिन आज पहली बार उसकी आँखों में असमंजस था। डायरेक्टर साहब ने गहरी साँस
लेते हुए कहा, “अर्जुन, हमें शक है कि हमारे सिस्टम
के भीतर कोई ‘शैडो एजेंट’ मौजूद है। दुश्मन को हमारी हर चाल पहले से पता चल रही
है।”
अर्जुन समझ गया कि यह मिशन
उसकी अब तक की ज़िंदगी का सबसे खतरनाक मिशन होने वाला है। इस बार दुश्मन सीमा पार
नहीं, बल्कि अपने ही लोगों के बीच छिपा था। उसे एक कोडनेम दिया
गया—ऑपरेशन ब्लैक कमल। इस ऑपरेशन का उद्देश्य था उस गद्दार तक पहुँचना, जो देश की आत्मा को धीरे-धीरे खोखला कर रहा था।
अगले ही दिन अर्जुन को
मुंबई भेजा गया, जहाँ एक प्रसिद्ध साइबर सुरक्षा कंपनी में काम करने वाला
वैज्ञानिक रहस्यमय परिस्थितियों में मारा गया था। पुलिस इसे आत्महत्या मान रही थी, लेकिन RAW को शक था कि उसकी मौत के पीछे अंतरराष्ट्रीय जासूसी नेटवर्क
का हाथ है। अर्जुन ने अपनी नई पहचान बनाई—आदित्य वर्मा, एक स्वतंत्र साइबर कंसल्टेंट।
मुंबई की बारिश में भीगी
सड़कों पर चलते हुए अर्जुन को एहसास हो रहा था कि कोई उस पर नज़र रखे हुए है। हर
कैफे, हर ट्रैफिक सिग्नल पर उसे लगता जैसे कोई अदृश्य साया उसके
पीछे है। इसी दौरान उसकी मुलाकात हुई माया सेन से—एक तेज़ दिमाग़ वाली पत्रकार, जो रक्षा सौदों में हो रहे
घोटालों पर रिसर्च कर रही थी। अर्जुन को नहीं पता था कि माया उसकी मददगार बनेगी या
सबसे बड़ा खतरा।
माया की आँखों में सवाल थे
और उसकी आवाज़ में आत्मविश्वास। उसने अर्जुन से कहा, “आप जो ढूँढ रहे
हैं, वही मैं भी ढूँढ रही हूँ। फर्क बस इतना है कि अगर मैं सच के
क़रीब पहुँची, तो शायद ज़िंदा न बचूँ।” अर्जुन समझ गया कि खेल अब शुरू हो
चुका है, और इसमें भरोसा सबसे महँगी चीज़ होने वाली थी।
उसी रात अर्जुन के होटल के
कमरे में एक गुप्त संदेश पहुँचा—“जो तुम खोज रहे
हो, वह तुम्हारे बहुत क़रीब है।”
संदेश पढ़ते ही अर्जुन के हाथ ठंडे पड़ गए। क्या दुश्मन उसे
पहले ही पहचान चुका था? या RAW
के अंदर से कोई उसकी हर हरकत पर नज़र रखे हुए था?
खिड़की के बाहर समुद्र की
लहरें टकरा रही थीं, और अर्जुन को एहसास हो रहा था कि यह मिशन सिर्फ जासूसी नहीं, बल्कि भरोसे और धोखे की जंग है। एक गलत कदम, और न सिर्फ उसकी जान जाएगी, बल्कि देश की
सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाएगी।
सुबह की पहली किरण जैसे ही
मुंबई की ऊँची इमारतों पर पड़ी, अर्जुन राठौड़ की नींद खुल
गई। पूरी रात वह सो नहीं पाया था। दिमाग़ में सिर्फ वही संदेश घूम रहा था—“जो तुम
खोज रहे हो, वह तुम्हारे बहुत क़रीब है।” उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह
चेतावनी थी या चुनौती। RAW
से संपर्क करना जोखिम भरा था, क्योंकि अब उसे
अपने ही सिस्टम पर भरोसा नहीं रह गया था।
अर्जुन ने तय किया कि वह
पहले माया सेन से मिलेगा। माया ने उसे शहर के एक पुराने पुस्तकालय में बुलाया था, जहाँ कैमरे कम और भीड़ ज़्यादा रहती थी। माया वहाँ पहले से मौजूद थी, उसके हाथ में फाइलों का ढेर था। उसने बिना भूमिका बाँधे कहा कि जिस वैज्ञानिक
की मौत हुई थी, वह एक गुप्त प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था—प्रोजेक्ट
अग्निपंख। यह प्रोजेक्ट भारत के मिसाइल डिफेंस सिस्टम से जुड़ा था, और अगर इसकी जानकारी दुश्मन देश तक पहुँच जाती, तो परिणाम
विनाशकारी हो सकते थे।
माया ने अर्जुन को कुछ
ईमेल्स दिखाए, जिनमें कोडेड भाषा में विदेशों से संपर्क के संकेत थे।
अर्जुन को शक गहराता जा रहा था कि यह सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि एक बड़ी साजिश का हिस्सा है। तभी पुस्तकालय के बाहर कुछ संदिग्ध लोग
दिखाई दिए। अर्जुन ने माया को इशारा किया और दोनों अलग-अलग दिशाओं में निकल गए।
कुछ ही पलों में पीछा शुरू हो गया।
भागते हुए अर्जुन एक संकरी
गली में घुस गया, जहाँ अचानक उसके सामने एक बाइक आकर रुकी। बाइक पर बैठा आदमी
नकाब में था। उसने धीमी आवाज़ में कहा, “अगर ज़िंदा रहना है, तो अभी बैठो।” हालात को समझते हुए अर्जुन ने जोखिम उठाया और बाइक पर बैठ गया।
कुछ ही मिनटों में वे लोग आँखों से ओझल हो चुके थे।
बाइक रुकते ही नकाब उतरा।
सामने खड़ी थी कविता मेहरा, RAW की सीनियर
इंटेलिजेंस एनालिस्ट। अर्जुन हैरान रह गया। कविता ने बताया कि उसे गुप्त रूप से इस
मिशन पर लगाया गया है क्योंकि RAW को शक है कि कुछ बड़े
अधिकारी देशद्रोह में शामिल हैं। कविता ने कहा कि लीक हुई जानकारी पाकिस्तान की ISI तक पहुँच रही है, लेकिन बीच में एक निजी अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क भी सक्रिय है।
इसी बीच माया का फोन अर्जुन
के मोबाइल पर आया। उसकी आवाज़ काँप रही थी। उसने बताया कि उसे धमकी मिली है और अगर
उसने अपनी जाँच जारी रखी,
तो उसका अंजाम भी उस वैज्ञानिक जैसा होगा। अर्जुन समझ गया
कि अब माया इस खेल का हिस्सा बन चुकी है, चाहे वह चाहे या नहीं।
रात होते-होते अर्जुन को एक
गुप्त ठिकाने पर ले जाया गया, जहाँ उसे एक ऑडियो
रिकॉर्डिंग सुनाई गई। उसमें एक जाना-पहचाना स्वर था—RAW के एक उच्च अधिकारी का। वही अधिकारी ISI एजेंट से सौदेबाज़ी कर रहा
था। अर्जुन का दिल बैठ गया। दुश्मन कोई बाहर का नहीं, बल्कि संगठन की रीढ़ में बैठा था।
रिकॉर्डिंग के अंत में वही
आवाज़ बोली—“ऑपरेशन ब्लैक कमल को खत्म कर दिया जाएगा।”
अर्जुन समझ गया कि अब वह सिर्फ देश के लिए नहीं, अपनी जान के लिए भी लड़ रहा है।
बाहर बारिश तेज़ हो चुकी
थी। बिजली की चमक में अर्जुन ने खुद से एक वादा किया—चाहे जो भी हो जाए, वह इस गद्दार को बेनकाब करेगा, चाहे कीमत उसकी ज़िंदगी ही
क्यों न हो।
मुंबई की उस बरसाती रात के
बाद अर्जुन राठौड़ की ज़िंदगी पूरी तरह बदल चुकी थी। अब वह सिर्फ एक RAW एजेंट नहीं था, बल्कि आधिकारिक रिकॉर्ड में भगोड़ा और देशद्रोही घोषित किया जा चुका था।
किसी ने RAW के इंटरनल सिस्टम में छेड़छाड़ कर उसके खिलाफ़ झूठे सबूत
डाल दिए थे। टीवी चैनलों पर उसका चेहरा चमक रहा था—“खुफिया अधिकारी पर
राष्ट्रद्रोह का आरोप।” अर्जुन जानता था कि यह उसी गद्दार की चाल है, जो ऑपरेशन ब्लैक कमल को खत्म करना चाहता था।
कविता मेहरा ने अर्जुन को
अंडरग्राउंड कर दिया। शहर के बाहर एक पुराने गोदाम में छिपते हुए अर्जुन ने पहली
बार महसूस किया कि अकेलापन क्या होता है। जिन लोगों पर उसने अपनी जान तक भरोसा
किया था, अब वही उसके दुश्मन बन चुके थे। इस बीच माया सेन से उसका
संपर्क टूट चुका था। अर्जुन को डर था कि कहीं माया को कुछ हो न गया हो।
दो दिन बाद एक गुप्त चैनल
से माया का संदेश मिला। वह गोवा में थी और उसने कुछ ऐसा खोज लिया था, जो पूरे खेल को पलट सकता था। अर्जुन बिना समय गँवाए गोवा पहुँचा। समुद्र तट की
चकाचौंध के पीछे मौत की साज़िश छिपी थी। माया ने अर्जुन को बताया कि उसका पिता
वर्षों पहले RAW का एजेंट था, जिसे देशद्रोह के झूठे आरोप
में मार दिया गया था। वही पैटर्न आज अर्जुन के साथ दोहराया जा रहा था।
माया के पास एक पेन ड्राइव
थी, जिसमें प्रोजेक्ट अग्निपंख से जुड़ी सारी फाइलें और विदेशी
बैंक खातों का विवरण था। इन खातों में पैसा ट्रांसफर करने वाला नाम सुनते ही
अर्जुन सन्न रह गया—RAW
का डिप्टी डायरेक्टर, विक्रम चौहान। वही व्यक्ति जो वर्षों से
देशभक्ति के भाषण देता आया था, असल में ISI का सबसे बड़ा मोहरा था।
लेकिन सच सामने आने से पहले
ही हमला हो गया। अंधेरे में से गोलियाँ चलीं। गोवा के शांत समुद्र तट पर चीख़ें
गूँज उठीं। अर्जुन और माया किसी तरह बचते हुए भागे, लेकिन माया के
कंधे में गोली लग गई। अर्जुन ने उसे संभाला और एक मछुआरे की नाव से दोनों निकल
पड़े। समुद्र की लहरों के बीच अर्जुन को एहसास हुआ कि अब पीछे हटने का कोई रास्ता
नहीं है।
नाव पर ही माया ने अर्जुन
से कहा, “अगर मुझे कुछ हो जाए, तो इस सच्चाई को दुनिया के
सामने लाना।” अर्जुन की आँखों में पहली बार गुस्सा नहीं, बल्कि आँसू थे। उसने वादा किया कि वह न सिर्फ देशद्रोही को बेनकाब करेगा, बल्कि उन सभी का नाम साफ करेगा जिन्हें झूठे आरोपों में मिटा दिया गया।
दिल्ली लौटते समय अर्जुन ने
अपना आखिरी दाँव खेलने का फैसला किया। उसने विक्रम चौहान को एक नकली डील का संदेश
भेजा—यह दावा करते हुए कि उसके पास प्रोजेक्ट अग्निपंख की अंतिम फाइल है। मुलाकात
की जगह तय हुई—राजस्थान का एक सुनसान एयरबेस। अर्जुन जानता था कि यह या तो जीत
होगी या अंत।
रात के अंधेरे में एयरबेस
पर खड़ा अर्जुन अपनी साँसों की आवाज़ सुन सकता था। दूर से हेलीकॉप्टर की आवाज़ आई।
विक्रम चौहान उतरा, उसके साथ विदेशी एजेंट भी थे। उसी पल अर्जुन ने रिकॉर्डिंग
ऑन कर दी। बातचीत शुरू होते ही विक्रम ने कबूल कर लिया कि उसने देश को पैसों के
लिए बेचा था।
अचानक सायरन गूँज उठा।
कविता मेहरा अपनी टीम के साथ पहुँच चुकी थी। चारों ओर से हथियार तान दिए गए।
विक्रम चौहान को गिरफ्तार कर लिया गया। उसके चेहरे से नकली देशभक्ति का मुखौटा गिर
चुका था।
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं
हुई। अर्जुन जानता था कि यह नेटवर्क सिर्फ एक आदमी तक सीमित नहीं था। यह जंग अभी
बाकी थी।
राजस्थान के उस सुनसान
एयरबेस पर हुई गिरफ्तारी के बाद पूरे देश में भूचाल आ गया। RAW के डिप्टी डायरेक्टर विक्रम चौहान का नाम जब देशद्रोह के आरोप में सामने आया, तो किसी को विश्वास नहीं हुआ। मीडिया, सरकार और सुरक्षा
एजेंसियाँ—सब सकते में थे। अर्जुन राठौड़, जिसे कल तक भगोड़ा कहा जा
रहा था, अब फिर से जाँच के केंद्र में था। लेकिन इस बार कहानी बदल
चुकी थी।
दिल्ली में एक गुप्त सुनवाई
शुरू हुई। बंद कमरे में अर्जुन ने सारी रिकॉर्डिंग, बैंक
ट्रांजैक्शन और विदेशी एजेंटों के सबूत पेश किए। माया सेन की दी हुई पेन ड्राइव
निर्णायक साबित हुई। एक-एक कर परतें खुलती गईं और यह साफ हो गया कि ऑपरेशन ब्लैक
कमल सिर्फ एक गद्दार की साज़िश नहीं, बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय जासूसी नेटवर्क का हिस्सा था, जो भारत की रक्षा प्रणाली को भीतर से तोड़ना चाहता था।
माया सेन अस्पताल में
ज़िंदगी और मौत से जूझ रही थी। गोली गंभीर थी, लेकिन उसकी आँखों में अब भी
वही जज़्बा था। अर्जुन उससे मिलने पहुँचा। माया ने धीमी आवाज़ में कहा कि वह इस
सच्चाई को सिर्फ सरकारी फाइलों में दबते नहीं देखना चाहती। उसने फैसला कर लिया
था—वह एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट प्रकाशित करेगी, ताकि देश की जनता सच जान
सके। अर्जुन जानता था कि यह कदम खतरनाक है, लेकिन यही लोकतंत्र की ताकत
भी थी।
रिपोर्ट प्रकाशित होते ही
पूरे देश में हलचल मच गई। कई बड़े नाम बेनकाब हुए। कुछ ने आत्महत्या कर ली, कुछ विदेश भागने की कोशिश में पकड़े गए। RAW के भीतर व्यापक सुधार शुरू
हुए। ऑपरेशन ब्लैक कमल को आधिकारिक रूप से सफल घोषित किया गया, लेकिन इसकी कीमत बहुत भारी थी।
एक दिन अर्जुन को डायरेक्टर
ने बुलाया। उन्होंने अर्जुन का नाम आधिकारिक रूप से साफ करते हुए कहा कि देश को उस
पर गर्व है। उसे प्रमोशन का प्रस्ताव मिला, लेकिन अर्जुन ने इनकार कर
दिया। उसने कहा, “सर,
जासूस की सबसे बड़ी जीत तब होती है जब उसका नाम कोई न
जाने।” वह फिर से अंडरकवर ज़िंदगी चुन चुका था।
माया सेन ठीक हो गई, लेकिन उसने पत्रकारिता छोड़ दी। उसने एक फाउंडेशन शुरू किया, जो उन परिवारों के लिए काम करता था जिनके सदस्य देश की सेवा करते हुए गुमनाम
रूप से शहीद हो गए। यह उसका अपने पिता और अर्जुन जैसे लोगों को दिया गया सम्मान
था।
कुछ महीनों बाद, एक सीमावर्ती शहर में अर्जुन एक नए नाम और नई पहचान के साथ चल रहा था। रेडियो
पर खबर चल रही थी—“भारत की सुरक्षा पहले से कहीं अधिक मज़बूत।” अर्जुन हल्की
मुस्कान के साथ आगे बढ़ गया। उसे पता था कि अंधेरे में रहने वाले लोग कभी
सुर्खियों में नहीं आते, लेकिन देश की नींव उन्हीं के कंधों पर टिकी होती है।
ऑपरेशन ब्लैक कमल खत्म हो
चुका था, लेकिन जासूस की जंग कभी खत्म नहीं होती।
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