अकबर-बीरबल की कहानी: "झूठ का पर्दाफाश"
एक दिन सम्राट अकबर अपने दरबार में बैठे हुए थे। उनके साथ बीरबल भी थे, और दरबार के अन्य मंत्री भी उपस्थित थे। अकबर को हमेशा अपने दरबारियों की बुद्धिमत्ता और समझदारी पर भरोसा था, लेकिन कभी-कभी वह यह भी देखना चाहते थे कि उनके मंत्री और दरबारी कितने ईमानदार हैं।
अकबर ने अचानक एक सवाल पूछा, "अगर कोई व्यक्ति सच बोलने के बजाय झूठ बोल रहा हो, तो क्या हम उसे तुरंत पकड़ सकते हैं?"
सभी दरबारी चुप हो गए, क्योंकि कोई भी इस सवाल का जवाब देना नहीं चाहता था। बस बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा, "महाराज, अगर कोई झूठ बोले, तो उसे पकड़ा जा सकता है।"
अकबर ने उसे चिढ़ाने के लिए कहा, "अगर तुम इतने निश्चिंत हो तो यह बताओ, तुम मुझे एक ऐसी चीज दिखाओ, जो बिल्कुल झूठ हो और किसी को इसका पता भी न चले।"
बीरबल ने एक क्षण सोचा और फिर बिना हिचकिचाए कहा, "महाराज, अगर आप मुझे थोड़ा समय दें तो मैं ऐसा कर सकता हूँ।"
अकबर ने कहा, "ठीक है, बीरबल। तुम्हारे पास तीन दिन का समय है।"
तीन दिन बाद, बीरबल ने एक विशाल रथ के पास एक लकड़ी का पिंजरा रखवाया, जिसमें एक अजिब सा पक्षी बंद था। बीरबल ने अकबर से कहा, "महाराज, यह पक्षी सबसे अद्भुत है। अगर इसे कोई देखेगा, तो वह इसे सच मानेगा, लेकिन यह केवल एक झूठ है।"
अकबर ने उत्सुक होकर पिंजरे की ओर देखा और पूछा, "यह पक्षी कौन सा है और क्या खास बात है इसमें?"
बीरबल ने कहा, "यह पक्षी दिखाई देता तो ऐसा है जैसे वह सिर्फ रात को ही दिखाई देता है। वह दिन में कहीं नहीं दिखता।"
अकबर ने पूछा, "लेकिन यह पक्षी यहाँ क्यों है?"
बीरबल मुस्कुराए और कहा, "महाराज, यह पक्षी किसी को नहीं दिखेगा। क्योंकि वह जो रात को दिखाई देता है, वो केवल दिन में झूठ बोलने का प्रतीक है। और यह पिंजरा ही इसका सबूत है, जो हर किसी को दिखता है कि झूठ कभी ना कभी सामने आ ही जाता है।"
अकबर ने गहरी सोच में पड़ते हुए बीरबल की समझदारी को सराहा और कहा, "तुम सही कह रहे हो, बीरबल। झूठ का पर्दाफाश होना तय है।"
इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि झूठ का पर्दाफाश कभी न कभी हो ही जाता है, और जो सच्चाई होती है, वह समय के साथ सामने आती है।
समाप्त।
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